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बादलों तक / मनीष मूंदड़ा

एक नयी पगडंडी खींच
बादलों तक
चलो चलतें हैं दूर कहीं
अनजान सफर
हो सवार हवा पे,
होते है रूबरू जि़ंदगी से
बहुत हुआ चलना
जानी पहचानी राहों पर
बहुत हुआ रुकना
पुरानी बातों पर
आओ अब एक नया आयाम दें
चलो एक नयी पगडंडी खींचे
बादलों तक।