दो बूँदें दृग से ढलका तुमने
बादल-बादल भटकाया हमको
खजुराहो, कोणार्क, एलिफेंटा,
ताज, अजँता, ऐलोरा-दर्शन
हरिद्वार, तिरुपति, प्रयाग,
काशी वैष्णो देवी, मथुरा-वृन्दावन
एक नदी-भर प्यास जगा
तुमने मृगजल-मृगजल भटकाया हमको
आग लगी मन-प्राणों में ऐसी
सिवा राख के कुछ भी नहीं बचा
लिखना था क्या-क्या लेकिन हमने
सिवा गीत के कुछ भी नहीं रचा
गीतों की सौगात सौँप तुमने
पागल-पागल भटकाया हमको
हर प्रात: पुरवा सँग हम घूमे
दिन-दिन भर सूरज के साथ चले
हर सँध्या जूगनू-जूगनू दमके
रात-रात भर बनकर दिया जले
झलक दिखा धूँधट-पट की तुमने
आँचल-आँचल भटकाया हमको