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बादल / सुरेन्द्र रघुवंशी

ख़ुशियों के नीले आसमान में
ये तुम्हारा समय नहीं था बादल
और अकड़-अकड़ कर
किसान की इकलौती जवान और सुन्दर बेटी
फ़सल का सीना ओलों की सफ़ेद गोलियों से
छलनी करने का समय तो बिल्कुल नहीं था

किसान गा रहे थे खेतों में जीवन के गीत
हवा के झोंकों में गेहूँ ही नहीं ,नाचता था उनका मन-मयूर भी
कि सयानी बिटिया का ब्याह हो जाएगा इसके सहारे
बिटिया के होने जा रहे पीले हाथों का सम्बन्ध
सीधे खेतों की हरियाली से था
साहूकार की अकड़ और धमकियों का
माकूल ज़बाव छिपा था आने वाले दानों में
बच्चों की पढ़ाई के सपने लहलहा रहे थे खेतों में
आने ही वाला था साल भर की मेंहनत का सुखद परिणाम जल्दी ही

साल भर की बेहतरीन पढ़ाई के पश्चात
शत-प्रतिशत सही उत्तर लिखने के बाद भी
किसी विद्यार्थी का परीक्षा-परिणाम
असफलता के साथ शून्य कैसे हो सकता है
पर तुम्हारे साथ ऐसा ही हो रहा है धरती-पुत्र

पर बादल तुमने क्रूर होकर बहा ही दिया खेतों की धमनियों में बहता हरा ख़ून
जो धरती के लाल की रगों में लाल बनकर बहता है

क्या तुम भी व्यवस्था और सत्ता से नहीं मिल गए हो बादल
तुम्हारी चुप्पी घोर षड्यन्त्र का अभिन्न हिस्सा है
अभी प्राकृतिक प्रकोप कहकर
कैसे अपना पल्ला झाड़कर चलती बनेंगी सरकारें
अपने पाँच सितारा मस्तीभरे आयोजनों का लुफ़्त उठाने

सत्ता के गलियारों में अपने कानों में उँगली डालकर चल रहे जननायकों के लिए
क्या अर्थ है करुण चीख़ों का
और आँखों पर स्वार्थ की पट्टी बाँधे
सिंहासन पर बैठी सरकार क लिए
असहनीय वेदनायुक्त न्याय की गुहार लगाते चेहरों के दृश्य क्या निरर्थक नहीं है ?