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बादल ओ! / केदारनाथ सिंह

हम नए-नए धानों के बच्चे तुम्हें पुकार रहे हैं-
बादल ओ! बादल ओ! बादल ओ!
हम बच्चे हैं,
(चिड़ियों की परछाई पकड़ रहे हैं उड़-उड़)
हम बच्चे हैं,
हमें याद आई है जाने किन जन्मों की-
आज हो गया है जी उन्मन!
तुम कि पिता हो-
इन्द्रधनुष बरसो!
कि फूल बरसो,
कि नींद बरसो-
बादल ओ!

हम कि नदी को नहीं जानते,
हम कि दूर सागर की लहरें नहीं माँगते।
हमने सिर्फ तुम्हें जाना है,
तम्हें माँगते हैं।
आर्द्रा के पहले झोंके में तुम को सूँघा है-
पहला पत्ता बढ़ा दिया है।
लिए हाथ में हाथ हवा का-
खेतों की मेड़ो पर घिरते तुम को देखा है,
ओठों से विवश छू लिया है।
ओ सुनो, अन्न-वर्षी बादल
ओ सुनो, बीज-वर्षी बादल
हम पंख माँगते हैं,
हम नए फेन के उजले-उजले
शंख माँगते हैं,
हम बस कि माँगते हैं
बादल! बादल!

घर बादल, आँगन बादल,
सारे दरवाज़े बादल!
तन बादल, मन बादल,
ये नन्हें हाथ-पाँव बादल-
हम बस कि माँगते हैं बादल, बादल।
तुम गरजो-
पेड़ चुरा लेंगे गर्जन,
तुम कड़को-
चट्टानों में बिखर जाएगी वह कड़कन।
तुम बरसो-
फूट पड़ेगी प्राणों की उमड़न-कसकन!
फिर हम अबाध भीजेंगे, झूमेंगे-
ये हरी भुजाएं
नील दिशाओं को छू आएँगी-
फिर तुम्हें वनों में पाखी गाएंगे,
फिर नए जुते खेतों से हवा-हवा बस जाएगी!
फिर नयन तुम्हें जोहेंगे जूही के जादू-वन में,
आमों के पार
साँझ के सूने टीलों पर!
फिर पवन उँगलियाँ तुम्हें चीन्ह लेंगी-
पौधों में, पत्तों में, कत्थई कोंपलों में!
तुम कि पिता हो-
कहीं तुम्हारे संवेदन में भी तो वही कंप होगा-
जो हमें हिलाता है!
ओ सुनो रंग-वर्षी बादल,
ओ सुनो गंध-वर्षी बादल,
हम अधजनमे धानों के बच्चे
तुम्हें माँगते हैं।