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बादल टूटे ताल पर / कैलाश गौतम

बादल
टूटे ताल पर |
आटा सनी हथेली जैसे
भाभी पोंछ गई
शोख ननद के गाल पर |

कजलीवन लौटी पुरवाई
गाता विन्ध्याचल
गंगा में जौ बोता खुलकर
इन्द्रधनुष आंचल
मीठा -मीठा चुंबन हँसकर
मौसम पार गया
नई फसल के भाल पर |

बंद गली की कसम न टूटी
गाड़ी छूट गई
लहरों में ही आर -पार की
माला टूट गई
तन जैसे पिंजरे का पंछी
मन का हाल वही
जैसे ढूध उबाल पर |