एक ग़ज़ल : बाद मुद्दत के .......
बाद मुद्दत के इक हंसी देखी।
एक मजलूम की खुशी देखी।
उनको देखा तो यूँ लगा मुझको-
जैसे बर-बह्र शाइरी देखी।
दिल के हाथों ही हम हुए मजबूर
हमने ऐसी भी बेबसी देखी।
है सितारा बुलंद किस्मत का-
उनकी आँखों में बेखुदी देखी।
नींद- तेरा बड़ा है शुकराना
ख्वाब में हमने आशिकी देखी।
यूँ हुआ इल्म मुक़म्मल अपना-
हमने जब प्यार-दोस्ती देखी।