भील लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
गुदड़ये बठो रे बानो कागते वाचे।
इनी धड़े फुवो, पली धड़े फुई।
विच मा बठो रे बानो, कागते वाचे।
इनी धड़े भाई, पत्नी धड़े भोजाई,
विच मा बठो रे बानो, कागते वाचे।
इनी धड़े बनवी, पत्नी धड़े बइण
विच मा बठो रे बानो कागद वाचे।
- गद्दी पर बैठा हुआ दूल्हा कागज पढ़ रहा है। दूल्हे के एक तरफ फूफा बैठा है और दूसरी तरफ फूफी बैठी है। बीच में दूल्हा कागज पढ़ रहा है। इस ओर भाई तथा उस ओर भौजाई बैठी है। इस ओर बहन और उस ओर बहनोई बैठा है। बीच में बैठा बना कागज पढ़ रहा है।