Last modified on 20 जुलाई 2010, at 16:27

बाप ने पठाया शहर / मनोज श्रीवास्तव


बाप ने पठाया शहर

मेरे बाप ने
पठाया शहर मुझे

सोंधापन गांव का पीकर,
गालों पर फूल
होठों पर कलियां
बांहों में हरी-भरी डालियां
सजाकर, सहेजकर
और भिनसारे से सांझ तक
आंखों की चौरस छिपली में
परोसी जा रही
रस्सेदार व्यंजन छोडकर,
मैं चला आया यहां
सडक की तारकोली गंध सुडकने
धूल और निकोटीनी गैस फांकने
इमारतों की परछाइयां चबाने.