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बाबा वैद्यनाथ कथा / राहुल शिवाय

कैलासोॅ से लंका लेली उड़लै सरंग देॅकेॅ
रावणोॅ के हाथ छलै बाबा वैद्यनाथ हो l
बीच मेॅ संभार लघुसंका जब होलै नै तेॅ
ग्वाला के हाथोॅ मेॅ ऐलै बाबा वैद्यनाथ हो l
ग्वाला के हाथो मेॅ भारी लगलै जे शिव-लिंग
धरती पेॅ धरी गेलै बाबा वैद्यनाथ हो l
छिनी गेलै सुख सब्भे, घोर दुःख रही गेलै
दैत्य नै उठाबै पैलै बाबा वैद्यनाथ हो l

ग्वाला बैजू के रो गैया, तोड़ी-तोड़ी रस्सी रोजे
आबी-आबी दूध केॅ चढ़ाबै वैद्यनाथ केॅ l
देखी-देखी बैजू के मनोॅ मेॅ चिढ़ हुए खुब्बे
लाठी-लाठी रोजे वों डंगाबै वैद्यनाथ केॅ l
एक दिना खाना छोड़ी उठी झट बैजू गेलै
काहे कि वों मारना भुलैलै वैद्यनाथ केॅ l
लाठी केॅ उठैथैं झट शिव जी प्रकट भेलै
बैजू नामे पूजै सब्भे आबेॅ वैद्यनाथ केॅ l