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बाबुल कैसे बिसरा जाई / दरिया साहब

बाबुल कैसे बिसरा जाई?
जदि मैं पति-संग रल खेलूँगी, आपा धरम समाई।
सतगुरु मेरे किरपा कीन्ही, उत्तम बर परनाई;
अब मेर साईंको सरम पड़ेगी, लेगा चरन लगाई॥
तैं जानराय मैं बाली भोली, तैं निर्मल मैं मैली;
तैं बतरावै, मैं बोल न जानूँ, भेद न सकूँ सहेली॥
तैं ब्रह्म-भाव मैं आतम-कन्या, समझ न जानूँ बानी;
'दरिया' कहै. पति पूरा पाया, यह निश्चय करि जानी॥