Last modified on 8 मई 2011, at 21:11

बाबू / नरेश मेहन

बाबू
मात्र ऑफिस की ही
दरकार नहीं है
वरन्
अपने आप में
सरकार ही है।
जो
नफे नुकसान
और
अभाव से जूझती है
अपने आश्रित के
मूल्य सूचकांको को
चेहरों पर
आंकती है
मगर
उनके हल
ऑफिस में तलाशती है
वास्तव में बाबू
मिश्रित अर्थव्यवस्था है
एक से दस तारीख तक
वह होता है पूंजीपति
ग्यारह से बीस तक
बेहतर समाजवादी
इक्कीस से तीस तक
कमजोर साम्यवादी।
अगर कभी
आ जाए किसी महीनें में
इक्कतीस तारीख
तो वह हो जाता है
बाजार में उग्रवादी
तथा घर में
मात्र सीधा साधा
अलसाया पति।
इस स्थिति में
वह
ऑफिस में
हो जाता है बेकाबू
इस दरम्यान
यदि कोई
इसके धक्के पड़ जाए
तो मक्खी की तरह
फाइलों में दब जाता है।