Last modified on 28 अप्रैल 2017, at 15:49

बारह बरिस हम आस लगैलो / अंगिका लोकगीत

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

अपने घर लौटने पर कोहबर में प्रवेश करते समय बहन द्वारा अपने भाई के ससुर की दरिद्रता का वर्णन इस गीत में हुआ है। बहन को आशा थी कि भैया को दहेज में मिले आभूषणों में उसे भी कुछ मिलेगा। लेकिन, वह निराश होकर अपने भाई के ससुर के घर की हीनता दिखलाने लगी है।

बारह बरिस हम आस लगैलों<ref>लगाया</ref>, भैया करतै<ref>करेगा</ref> बिहा<ref>विवाह</ref> गे माई।
भैया के हाथ सोना अँगुठी देतैन, ताहि लै गहना गढ़ायब गे माई॥1॥
कैसन दलिदर घर भैया बिहा कैले, कुछु नहिं जैतुक<ref>किया</ref> देल गे माई॥2॥

शब्दार्थ
<references/>