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बारा बजे महट्टर आये / सुशील सिद्धार्थ

बारा बजे महट्टर आये
तइकै सेाइ रहे तनियाये
कहिकै गदहौ पढ़ौ पहाड़ा, चुप्पे ते।
सिच्छा के भे बंद केंवाड़ा, चुप्पे ते॥

तोंदु मजे मा रहि रहि फूलै
खटिया तर पइजामा झूलै
मुरहा लउंडे खइंचै नाड़ा, चुप्पे ते॥

कहैं कि सबु परधान संभरिहैं
सबु हिसाबु मिलि जुलि कै करिहैं
ई रुपयन ते बजी नगाड़ा, चुप्पे ते॥

की का फुरसति यू सब र्वाकै
अइसी द्याखै वइसी ट्वाकै
घर घर मा मुलु चलै अखाड़ा, चुप्पे ते॥

चादरि ओढ़ि व्यवस्था स्वावै
फाइल फाइल कुतवा र्वावै
द्यास कि आंखि मा परिगा माड़ा, चुप्पे ते॥