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बारिश / आरती मिश्रा

बाढ़
फिर राहत... सहायता... पुनर्वास

थोड़ी देर बाद
वे आवाज़ें चीख़ों में बदल गईं
अब, एक ही शब्द चौतरफ़ गूँज रहा था

तबाही ऽ..ऽ
तबाही ऽ..ऽ
तबाही ऽ..ऽ

मेरे पास और सुनने का साहस न था
दोनों हाथ कान तक पहुँच चुके थे
मैंने टेलीविजन बन्द कर दिया