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बालियां, ये बेटियां हैं / अमरेन्द्र

बालियाँ, ये बेटियाँ हैं
तितलियाँ, ये बेटियाँ हैं ।

एक हल्की-सी हँसी, ज्यों
भगवती के ही अधर की,
मेघ की छाया रुकी-सी
जेठ के दिन-दोपहर की;
नींद शिशु की हो इकट्ठी,
माँ की कोमल लोरियाँ हों,
खिलखिलाना रह-ठहर कर
शील-शोभित होरियाँ हो,
शरत की सरिता से उठती
वीचियाँ, ये बेटियाँ हैं ।

भोर की मृदु किरण कोमल,
साँझ की संझवाती झलमल,
तारिकाएं तम-निशा में,
मोह को वरदान संबल!
घर कोई आँगन कोई हो
गंध तुलसी की खड़ी-सी,
प्राण टूटे ही न क्यों हों
बाँध लेती फुलझड़ी-सी
शक्ति की लेने परीक्षा
बिजलियाँ, ये बेटियाँ हैं।