बावजूद इसके
तुम चहारदीवारी मेंहो
संस्कार की सीमापर बी०एस०एफ़०
तैनात हैं
परम्पराओं से आतंकित हैं
तुम्हारी शिराएँ
आँगन के नीम पर लगती
परिन्दिं की पंचायत
दीवार से कान लगाने की
तुम्हारी आतुरता
आहट पाते ही उनका फुर्र हो जाना
मण्डराते गिद्ध के बावजूद
ज़रूर देखा है तुमने
सूरज के डूबते
तुम्हारे नेत्र सजल तो होते हैं।
13.08.1997