यह कौन रो रहा है
राजपथ पर
क्रंदन के बीच अस्पुष्ट स्वर.. ..
भारथ माता जार-बेजार रो रही है
अरे! बावनदास
तुम तो पूँजीवाद के मारे मर गए
दुलारचंद कापरा की
गाड़ियों के नीचे दब गए
फिर कैसे पहुँचे
राजपथ पर
क्या सरकार ने देखा नहीं ?
आत्माओं के लिए जैमर नहीं
पंचसितारा होटल में
कापरा के औलाद की
नींद टूटती है
बियर से कुल्ला करता है
जवान जागता है पहाड़ियों पर
गोली लगती है
किसान-मज़दूर का बेटा
प्यासा मरता है
सारा ग्लूकोज पी गए
जवानों को पत्ते चबाना है
फिर से खड़ा होता है जवान
पत्ते चबाता है, रायफ़ल उठाता है
आबनूस के फर्नीचर पर
पूँजीवाद रंभाता है
जवान ख़ुद को रेगिस्तान में पाता है
पेड़ नहीं, पत्ते नहीं
फिर गोली लगती है
उसके पास पेन किलर नहीं
सारा दर्द तो देश चलाने वालों के पास है
नेता कहता है
जवान पैसे के लिए मरता है
नेता पैसे के लिए जीता है
बार-गर्ल्स के कंधे पर हाथ रख
उद्घाटन के फीते काटता है
रोड पर चीख़ें आती हैं
पूँजीवाद बलात्कार करता है
लेकिन यह तो कोई–न–कोई
रोज़ चिल्लाता है
नुक्कड़ों पर, ड्राइंगरूम में
फिर तुम्हें क्या तकलीफ़ थी
बावनदास !
उसका चेहरा विद्रूप हो जाता है
कहता है ―
यही तो तकलीफ़ है।
(बावनदास और दुलारचंद कापरा फणीश्वरनाथ रेणु रचित महान आंचलिक
उपन्यास ’मैलाआँचल’ के पात्र हैं।)