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बावरी लड़की / नेहा नरुका

एक लड़की बावरी हो गई है
बैठी-बैठी ललराती है
नाख़ूनों से
बालों से...,
भिड़ती रहती है
भीतर ही भीतर
किसी प्रेत से

चाकू की उलटी-तिरछी रेखाएँ हैं
उसके माथे पर
नाक पर
वक्ष और जँघाओं पर
उभरे हैं पतली रस्सी के निशान

होंठों से चूती हैं
कैरोसीन की बूँदें
फटे वस्त्रों से
जगह-जगह
झाँकते हैं
आदमख़ोर हिंसा के शिलालेख

सब कहते जा रहे हैं
बाबरी लड़की
ज़रूर रही होगी
कोई बदचलन
तभी तो
न बाप को फ़िकर
न मतारी को

सुनी-सुनाई
पते की बात है
लड़की घर से
भाग आई थी

लड़का-लड़की चाहते थे
एक दूसरे को
पर यह स्वीकार न था
गाँव की पंचायतों को
सो लड़का, लड़की को एक रात
भगाकर शहर ले आया

बिरादरी क्या कहेगी सोचकर
बाप ने फाँसी लगा ली
मतारी कुण्डी लगा के पंचायत में
ख़ूब रोई
बावरी लड़की पर

पटरियों...ढेलों से होती हुई
लड़की मोहल्लों में आ गई
रोटी माँग-माँग कर पेट भरती
ऐसे ही गर्भ मिल गया
बिन माँगी भीख में
बड़ा पेट लिए गली-गली फिरती
ईंट कुतरती

एक इज़्ज़तदार से यह देखा न गया
एक ही घण्टे में पेट उसने
ख़ून बनाकर बहा दिया
और छोड़ आया शहर से दूर
गन्दे नालों पर
कचरा होता था जहाँ
सारे शहर का
कारख़ानों का
पाख़ानों का
बावरी लड़की कचरा ही तो थी
सभ्य शहर के लिए
जिसमें घिन ही घिन थी

नाक छिनक ली
क़िस्सा सुनकर महाशयों ने
मालिकों-चापलूसों ने
पण्डितों-पुरोहितों ने
और अपने अपने घरों में घुस गए
बाहर गली में
बावरी लड़की पर कुछ लड़के
पत्थर फेंक रहे हैं
‘कहाँ से आ गई यह गन्दगी यहाँ’
हो.. हो.. हो.. हो...
बच्चे मनोरंजन कर रहे हैं
जवान और बूढ़े भी

खिड़कियाँ और रोशनदान बन्द कर
कुलीन घरों की लड़कियाँ
वापस अपने काम में जुट गईं

‘अरे भगाओ इसे --
जब तक यह...
यहाँ अड़ी बैठी रहेगी
तमाशा होता रहेगा’
एक अधेड़ सज्जन ने कहा..
पौधों में पानी दे रही उनकी बीबी
नाक-भौं सिकोड़ने लगी
‘कौन भगाए इस अभागिन को’

लड़की बावरी
ख़ुद ही को देख-देख के
हँस रही है
ख़ुद ही को देख-देख के
रोती है
सेकेण्ड दो सेकेण्ड
चेहेर के भाव बदलते हैं
गला फाड़ कर पसर जाती है
गली में ही
जानवरों की तरह
बावरी लड़की...