बाहर कितना शोर मचा है,
भीतर आती एक न आहट,
इसी मुक्ति के लिए
तुम्हारे मन में थी इतनी अकुलाहट ।
अरे बन्धु । यह तो कारा है,
दृढ प्राचीरें, द्वार अचल है ,
और वहाँ जनघोष, क्रान्तियाँ --
और यहाँ…सबकुछ निश्चल है ।
बाहर कितना शोर मचा है,
भीतर आती एक न आहट,
इसी मुक्ति के लिए
तुम्हारे मन में थी इतनी अकुलाहट ।
अरे बन्धु । यह तो कारा है,
दृढ प्राचीरें, द्वार अचल है ,
और वहाँ जनघोष, क्रान्तियाँ --
और यहाँ…सबकुछ निश्चल है ।