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बाहर-भीतर / रामदरश मिश्र

एक हैं आधुनिकतावादी जाने माने कवि किशोर ‘पुलकित’
एक हैं पंडित आनंद शर्मा जी
कई भाषाओं के प्रकांड विद्वान
और प्रभावशाली समकालीन लेखक

आज मैं आनंदजी से मिलने गया तो देखा-
पुलकित जी इनके चरणों पर लेटे हुए हैं
और कुछ पाने की ज़िद कर रहे हैं
मुझे देखते ही अचकचा कर उठ बैठे

कुछ देर बाद हम कमरे से बाहर निकले
तो पुलकित जी शुरू हो गये-
”आनंद जी बहुत ढोंगी हैं यार
आधुनिक युग में भी
उनके विचारों, रहन-सहन, खान-पान आदि में
घोर रूढ़िवादी ढोंग भरा हुआ है“
मैंने आश्चर्य से पुलकित जी का चेहरा देखा
वह निर्विकार था
मैं सोचने लगा कि ढोंगी कौन?
पंडित आनंद जी जो कि जो कमरे में हैं वही बाहर हैं
या कियह पुलकित
जो कमरे में कुछ और होता है
और बाहर निकलते ही कुछ और हो जाता है
मैं ठठा कर हँसा
पुलकित मुझे देखने लगा
और शायद कयास करने लगा कि
मैं किस पर हँसा हूँ।