मैं देख रही हूँ
उस तारे को अस्त होते-सा
जिसे पहली बार मैंने देखा था
आकाश-गर्भ में
या कि महसूसा था
अमृत-झरने सा
अपने कुण्ड में….
सुनो जी,
तुम तो भूलते जा रहे हो
कि तुम्हारा बेटा होने के अलावा
वह अपने में पूरा आदमी
एक इन्सान
कई कई इच्छाएँ और आाकाँक्षाएँ लिए हुए
सपनों को बुनते
और उन्हें जीते हुए
सुनो जी,
वह केवल तुम्हारा बेटा ही नहीं है
मेरा भी वह कुछ होगा
सुनो तो
कुछ उसकी भी सुनो तो...
न.. न...मैं यह नहीं कह रही कि
जैसे सब चलते हैं
वैसे ही तुम भी चलो
पर जीवन की अपनी भी कोई लय है
कोई सुर ताल...
सबके जीवन में
ज़रा-सा रुको
कुछ तो झुको
जीवन मुरझाया जाता है
अपने ही तारे को अस्त होते देखा
मरने जैसा है धीरे ...धीरे...
सुनो जी...कुछ मेरी भी....सुनो...