कितना कठिन है
शब्दों में तुम्हें समेटना
बा
तुम एक परछाईं-सी सूरज की
उसी के वृत्त में अवस्थित
चंदन लेप के समान
उसको उसी के ताप से दग्ध होने से बचातीं
उसे भास्कर बनातीं…
कितना कठिन है
शब्दों में तुम्हें समेटना
बा
तुम एक परछाईं-सी सूरज की
उसी के वृत्त में अवस्थित
चंदन लेप के समान
उसको उसी के ताप से दग्ध होने से बचातीं
उसे भास्कर बनातीं…