खाली पिंजरा
डोल रहा
ओसारे में!
चला गया
सुगना
बिखरे हैं पर
टीसों के
मौसम से
गए ठहर
फ़र्क न लगता
शाम-सुबह
अंधियारे में!
फेरे हैं
दिन-भर
परछाईं के
आए ना
झोंके
पुरवाई के
टोना-सा है
अमलतास
कचनारों में!
खाली पिंजरा
डोल रहा
ओसारे में!
चला गया
सुगना
बिखरे हैं पर
टीसों के
मौसम से
गए ठहर
फ़र्क न लगता
शाम-सुबह
अंधियारे में!
फेरे हैं
दिन-भर
परछाईं के
आए ना
झोंके
पुरवाई के
टोना-सा है
अमलतास
कचनारों में!