Last modified on 24 जुलाई 2018, at 21:15

बिजोग / लक्ष्मीनारायण रंगा

बीत रई है
जिन्दगी
उणीं भांत
जियां
मांझळ रात नैं
आलणैं सूं
पंछीड़ो,
भटक्योड़ो
डांफां मारतो फिरै
अंध्यारी रात में