बार-बार मुझे सपना यह आता है
मेरे भी बिटिया है एक
जिसके विवाह का इन्तज़ार डराता है
नर्म हॄदय है, स्नेह की मन में
भावना है नेक
आख़िर को वह वधू बनी
और फिर उसे सजाया गया
भाव-विह्वल हो प्यार से मैं
स्नेह-नदी में बह गया
दुल्हन के नवरूप में उसे जब
मेरे पास लाया गया
अपनी सुन्दर बिटिया को मैं
देखता ही रह गया
घूँघट हटा उसके चेहरे से
मैंने देखा उसे एक बार
वह क्षण ऐसा था कि उसे देख
मन भारी हो गया
चेहरे पर उसके लाजभरी चमक थी
आँखों में था प्यार
पर मैं सफ़ेद पड़ गया था,
(02 जुलाई 1916)
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय