जोह रहा हूँ बाट अभी तक
बिटिया आएगी !
आएगी, आते ही
बिस्तर पर पड़ जाएगी !
कह देगी – आराम करूँगी
बहुत थक गई हूँ
करते-करते काम सुबह से
बहुत पक गई हूँ
आंखें मून्दे-मून्दे ही
कुछ पल सुस्ताएगी !
छोटी बहन कहेगी – दीदी,
कुछ तो बातें कर
दिन-भर की अनुपस्थिति का
कुछ तो हरजाना भर
बिटिया उसके प्रश्नों से
रह-रह कतराएगी !
माँ अपनी ममता उण्डेलकर
उसे दुलारेगी
चाय बनाकर उसे
उठाएगी, पुचकारेगी
अपने हाथों से उसका
माथा सहलाएगी !
वह बोलेगी – मैं मनुष्य हूँ
कितना भार सहूँ
मैं मशीन की तरह
बताओ, कब तक लगी रहूँ
माँ स्नेहिल थपकी से
उसका मन बहलाएगी !
मैं कह दूँगा – छोड़ नौकरी
क्या मजबूरी है ?
हद से ज़्यादा निष्ठा भी
क्या बहुत ज़रूरी है ?
बिटिया कुछ न कहेगी
वह केवल मुस्काएगी !
पर यह सम्भव कहाँ
कि यह तो ख़ामख़ायाली है
बिटिया ने तो चुप रहने की
क़सम उठा ली है
चित्र-जड़ी वह यादों की ही
प्यास बुझाएगी !
बिटिया चली गई दुनिया से
अब क्या आएगी !