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बिन चीखा मधु माधव मेरा / सुनीता जैन

बिन चाखा मधु माधव मेरा,
किंशुक-कोमल कंचन-उर यह
द्रवित-क्लेदित तरल-तरंगित
उमड़-उमड़ भर आया

अनबींधी मुक्ता-सी, माधव
नित नूतन उषा ज्यों रंजित
सम्पुट कर में पद्म सुगंधित
अर्पित आकुल काया!