बिराजत रासेस्वरि-रसराज।
गौर-स्याम तन नील-पीत पट सजे मनोहर साज॥
चंचल चपल नैन की चितवनि चित उपजावत मोद।
मधुर बचन रसभरे परस्पर कहि-कहि करत बिनोद॥
कलित केलि कमनीय अलौकिक रस-आनंद अनूप।
पल-पल बढ़त भाव-माधुरि सुचि, विकसत नव-नव रूप॥
बिराजत रासेस्वरि-रसराज।
गौर-स्याम तन नील-पीत पट सजे मनोहर साज॥
चंचल चपल नैन की चितवनि चित उपजावत मोद।
मधुर बचन रसभरे परस्पर कहि-कहि करत बिनोद॥
कलित केलि कमनीय अलौकिक रस-आनंद अनूप।
पल-पल बढ़त भाव-माधुरि सुचि, विकसत नव-नव रूप॥