शाम के वक़्त
एक ठण्डे बस-स्टॉप पर
एक बड़ी बिल्ली
अन्धकार में
मेरा पूरा प्रेम पी गई
मैं उसका फर हूँ
मैंने भींचा उसे, छोड़ा नहीं
बादल टुकड़ों में गिरने लगे
मानो वे पर्याप्त हों धरती के लिए
बिल्ली की छत्त थे कान
पंजे उसका घर
उसके दुःख और ख़ुशी
ऐसी जगहें जहां कोई नहीं रहता
और वहाँ
मैंने उसे आलिंगन में लिया
अपनी पूरी बाँहों में भर लिया ।