दाना हूँ मैं नन्हा-मुन्ना,
मिट्टी में हूँ गड़ा-गड़ा!
कैसी होगी दुनिया बाहर,
सोच रहा हूँ पड़ा-पड़ा!
मीठा-मीठा पानी पीकर,
अंकुर मैं बन जाऊँ!
बढ़िया खाद मिले तो खाकर,
खिल-खिलकर मुस्काऊँ!
बाहर आकर धीरे-धीरे,
बड़ा पेड़ बन जाऊँ!
नीले-नीले अंबर नीचे,
हवा संग लहराऊँ!
नन्हीं चिड़िया मेरे ऊपर,
अपना नीड़ बनाए!
सुंदर मीठे गीत सुनाकर,
मेरा मन बहलाए!
तपती गर्मी से थककर जब,
राहगीर भी आए!
शीतल-शीतल छाया पाकर,
खुश तुरंत हो जाए!
तेज हवा के झोंके खाकर,
मीठे फल बरसाऊँ!
मेरे पास चले जब आओ,
तुमको ख़ूब खिलाऊँ!