बीड़ी फूँक फूँक
दिन अपने
काटे रामभजन ।
तीन माह से मिल वालों से
वेतन नहीं मिला,
कितने घर ऐसे हैं जिनमें
चूल्हा नहीं जला,
आश्वासन की बून्दें कब तक
चाटे रामभजन ।
'काम बन्द' की तख़्ती टाँगे
रोज़ हुईं हड़तालें,
उस पर बढ़ती महँगाई ने
पतली कर दी दालें,
चढ़े हुए करज़े को
कैसे पाटे रामभजन ।
लीडर की बातों मे आकर
मारी पैर कुल्हाड़ी,
कई कई दिन उसे कहीं भी
मिलती नहीं दिहाड़ी
दारू भी तो नहीं,
कहाँ दुख बाँटे रामभजन ।