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बी पॉज़िटिव / शहनाज़ इमरानी

पहचानी हुई सी जगह पर मैं अकेली
मुझे पहचानने वाला कोई नहीं
पहचान तो ख़ुदी से होती है, फिर अन्धेरा हो या रौशनी
सामने वाले बिस्तर पर रोती स्त्री के
आँसुओं का गीलापन, ख़ुद की आँखों में महसूस होता
खिड़की से बाहर नज़र जाती
गली के नुक्क्ड़ पर लगा उदास लैम्प पोस्ट
शायद अब रोशनी नहीं देता
लोहे के जंगले पर फुदकती चिड़िया
गमलों के मुरझाते फूल
बैचेनी हर चीज़ का रंग बदल देती
कहीं बादलों के बीच "मैं" और कोई आवाज़ नहीं
एक निर्वात में खो जाती
किताबों के नाम, कहानियों के किरदार
हादसों का बयान, एथनाग्राफिक डिटेल्स
किसी मायावी घटना के घटने की उम्मीद
मुझे छूकर निकल जाती

बिस्तर पर वापस
घुटने पेट की तरफ़ मोड़ते हुए
महसूस होता, ख़ालीपन कुछ कम हुआ
"बी पॉज़िटिव" एक बोतल ख़ून दौड़ने लगता नसों में ।