भेज रहे हैं नेह निमंत्रण,
चिड़ियों तुम्हें बुलाने को।
दाने बिखराए आंगन में,
भूल न जाना आने को।
जिस दिन दाने बिखराऊंगा,
उस दिन तुम्हें बुलाऊंगा।
परंपरा दादी ने छोड़ी,
उसे सदा चलवाऊंगा।
दादाजी भी रोज़ गाय को,
ताजी रोटी देते थे।
इसी तरीके से गौ माँ से,
ढेर दुआएँ लेते थे।
चिड़ियों को दाना खिलवाना,
गायों को रोटी देना।
ये कितने भोले हैं इनसे,
सदा दुआ लेते रहना।
बड़े-बुजुर्गों की बातों में,
कुछ न कुछ रहता है सार।
पता नहीं क्यों नई पीढ़ी अब,
इन्हें समझती है बेकार।