मुँह ही मुँह कुछ बुड्बुड् करता, बहता है
ये बुड्ढा दरिया!
कोई पूछे तुझको क्या लेना, क्या लोग किनारों
पर करते हैं,
तू मत सुन, मत कान लगा उनकी बातों पर!
घाट पे लच्छी को गर झूठ कहा है साले माधव ने,
तुझको क्या लेना लच्छी से? जाये,जा के डूब मरे!
यही तो दुःख है दरिया को!
जन्मी थी तो "आँवल नाल" उसी के हाथ में सौंपी
थी झूलन दाई ने,
उसने ही सागर पहुचाये थे वह "लीडे",
कल जब पेट नजर आयेगा, डूब मरेगी
और वह लाश भी उसको ही गुम करनी होगी!
लाश मिली तो गाँव वाले लच्छी को बदनाम करेंगे!!
मुँह ही मुँह, कुछ बुड्बुड् करता, बहता है
ये बुड्ढा दरिया!!