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बुढ़शाला के बेयान / 4 / भिखारी ठाकुर

बुढ़शाला (अल्हा लय)

मइया पटकत बानी माथ, आदि भवानी चरन में तोहरे॥
काली कंठ पर होखऽ सहाय, भुलल अछरिया जोरले जइहऽ॥
‘सिलानाथ’ के लागू पाँव, जिनकर मन्दिर बाटे सिल्लहउरी॥
चरन कमल के कइलीं आस, सतीपिअनियाँ के बड़ दानी॥
दिने-राति करिहऽ खोज, विघिन ना उपजे एह अवसर में॥
भूतनाथ के सूनी बेमान जन्मधाम दादाबाबू के॥
‘कुतुबपुर’ के घुसरिया गाँव, रहे कहावत ‘साहाबाद में’॥
गंगाजी कइली हाल बेहाल, ढाहके भेज दिहली सारन में’॥
दीअर परल कछुक दिन बाद, डेरा बन्हाइल साबित जगहा॥
केहू बनावल घर-दुआर, केहू डेरा खोंप बान्हि के॥
केहू पाही जोतत बा, आधा बस्ती ‘साहाबाद’ में॥
आधा सारन बा कहलात जिअका बाटे दूनो पार में॥
बीचे बहल गंगा के धार, दूनों बस्ती कुतुबपुर ह॥
दखिन ह ऊ खास महाल, उत्तर कोटवा जमींदार के॥
कुतुबपुर देयालचक गाँव, सभ दिन के एक ठौरे रहउये॥
ओही में बाटे सुरतपुर, टोडरमलपुर रकबा भारी ह॥
सब बाबू के नाउँ माथ, जवरे रहलीं कइक पुस्तक से॥
हमरा घटी के करब माफ। जो कुछ भुलल-चूकल होखी॥
”बुढ़शाला“ के देली निकाल। बिना इजाजत बस्ती भर का॥
अइसन भइल ना होखत बा। देस-बिदेसे कवनो जगहा॥
हम नया कइलीं प्रचार, आस पुराई बाबू-भइया॥
मदद लेके थोरा-थोर, बने बुढ़शाला गाँव-गाँव में॥
मांगत बानी अतने भीख, हईं ‘भिखारी’ बच्चेपन के॥