बुतरु-तुतरु एक्के रं
जेहनोॅ झूमै खाय केॅ भंग
दोनों में जब होतै जंग
केना रहतै एक्के संग।
एक उड़ाबै लाल पतंग
एक देखी केॅ फड़कै अंग
दोनों घर के शोभा छै
सरंगोॅ के पनसोखा छै।
एक दोनों के भावै छै
दोनों मौज उड़ावै छै
दोनों मिट्ठोॅ बोलै छै
धनंजय मोॅन डोलै छै।