कटहरमे लस्सा तँ प्रकृतिकेर देन थिकै,
बिनु लस्साकेर कतहु कटहर भेलैक अछि?
ऊपरसँ काँटोकाँट,
भीतरमे छहोछित्त,
कमरीकेँ ओढ़ने
आ आँठीकेँ गिड़ने को
नेढ़ाकेँ पँजिया कऽ धयने रहैत अछि।
राजनीतिकेर असल
रूपथिकै यैह कि ने?
कटहर खयबाक होअय
इच्छा जँ मनमे तँ
लस्सा लगबाक डऽर
मनसँ भगाय लियऽ।
मोंछमे न लागय,
ने लोकमे देखार होइ,
पहिने रहि सावधान
कडूतेल औँसि लैछ
बुद्धिमान जुगता कऽ हाथ तथा मोंछमे।
किन्तु तदपि
कटहर जे गमगम करैत छैक
ताहिसँ तँ आभास
कनेमने होइते छै,
तकर छै उपायो नहि।