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बुद्ध / सुदर्शन रत्नाकर

आँखें बंद करती हूँ तो
भीतर कुछ चेहरे दिखाई देते हैं
उसमें मेरे पिता का चेहरा दिखाई
देता है जो
बुद्ध हो गए थे
उसमें मेरे बाबा का भी चेहरा है
वे भी बुद्ध हो गए थे
त्याग दिये थे उन्होंने
मोह, माया, ममता के भाव
और प्रवृत्ति से शांत हो गए थे।
उनके कंधे क्या झुके,
फिसल गए थे सारे अधिकार
अगली पीढ़ी के मज़बूत कंधों पर
अनंत काल से चली आ रही परम्परा में
पीढ़ी दर पीढ़ी
स्थानांतरित होती रही विरासत
और हर पिता बुद्ध होता गया।