लाल इमली कहते ही इमली नहीं कौंधी दिमाग़ में
जीभ में पानी नहीं आया
‘यंग इण्डिया’ कहने पर हिन्दुस्तान का बिम्ब नहीं बना
जैसे महासागर कहने पर सागर उभरता है आँखों में
जैसे स्नेहलता में जुड़ा है स्नेह और हिमाचल में हिम
कम से कमतर होता जा रहा है ऐसा
इतने निरपेक्ष विपर्यस्त और विद्रूप कभी नहीं थे हमारे बिम्ब
कि पृथिवी पर हो सबसे संहारक पल का रिहर्सल
और कहा जाए
बुद्ध मुस्कराये हैं