बुरा कहें तो बुरे हैं, भला कहें तो भले
हम अक्स आपके दिल के ही आइने में ढले
हम ऐसे होश से बाज़ आये, दूर-दूर हों आप
ये बेसुधी ही भली है कि हैं गले-से-गले
पहुँचते लोग हैं सोये-ही-सोये मंज़िल तक
जगे हुए भी मगर हम तो दो क़दम न चले
छिपाके रखलो कोई प्यार की किरन इसकी
पता नहीं कि दिया फिर कभी जले न जले
भले ही कोई निगाहें चुरा रहा है, गुलाब!
छिपा है प्यार भी पलकों की बेरुख़ी के तले