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बुरा क्या किया था / महेन्द्र भटनागर

मैंने, बताओ, तुम्हारा बुरा क्या किया था ?

कोमल कली-सी अधूरी खिली थीं,
जब तुम प्रथम भूल मुझसे मिली थीं,
अनुभव मुझे भी नया ही नया था,

अपना, तभी तो, सदा को तुम्हें कर लिया था !

जीवन-गगन में अँधेरी निशा थी,
दोनों भ्रमित थे कि खोयी दिशा थी,
जब मैं अकेला खड़ा था विकल बन
पाया तुम्हें प्राण करते समर्पण,

उस क्षण युगों का जुड़ा प्यार सारा दिया था !

तुमने उठा हाथ रोका नहीं था,
निश्चिन्त थीं ; क्योंकि धोखा नहीं था,
बंदी गयीं बन बिना कुछ कहे ही
वरदान मानों मिला हो सदेही,

कितना सरल मूक अनजान पागल हिया था !