मैंने, बताओ, तुम्हारा बुरा क्या किया था ?
- कोमल कली-सी अधूरी खिली थीं,
- जब तुम प्रथम भूल मुझसे मिली थीं,
- अनुभव मुझे भी नया ही नया था,
अपना, तभी तो, सदा को तुम्हें कर लिया था !
- जीवन-गगन में अँधेरी निशा थी,
- दोनों भ्रमित थे कि खोयी दिशा थी,
- जब मैं अकेला खड़ा था विकल बन
- पाया तुम्हें प्राण करते समर्पण,
उस क्षण युगों का जुड़ा प्यार सारा दिया था !
- तुमने उठा हाथ रोका नहीं था,
- निश्चिन्त थीं ; क्योंकि धोखा नहीं था,
- बंदी गयीं बन बिना कुछ कहे ही
- वरदान मानों मिला हो सदेही,
कितना सरल मूक अनजान पागल हिया था !