वह घूंघट नहीं काढ़ती
पुरुषों से करती हैं बातें
मिलाती है हाथ
नहीं शर्माती सकुचाती
जोर से हंसती है
तर्क करती है
हर बड़े-छोटे की आंखों में आंखें डाल
पुरुषों के साथ करती है काम
वह करती है बहस खुलेआम
स्त्री-पुरुष सम्बन्धों पर
एड्स पर
गर्भवस्था में उत्पन्न होने वाली
समस्याओं पर
सड़कों बसों ट्रेनों में
घूरती लपलपाई कुंठित भूखी
आकृतियों को सबक सिखाने को
रहती है तत्पर
मेरे पड़ोसियों की नज़र में
वह औरत बुरी है...!