जब भी
अपने मातहत को
बुलाती हूँ प्रेम से
पूछती हूँ कुशल –क्षेम
कहती हूँ नरमी से
वक्त-वेवक्त
मददा ले लेने को
उसकी आँखों में
आतंक भर उठता है
जब भी
अपने मातहत को
बुलाती हूँ प्रेम से
पूछती हूँ कुशल –क्षेम
कहती हूँ नरमी से
वक्त-वेवक्त
मददा ले लेने को
उसकी आँखों में
आतंक भर उठता है