बूँदें / ऋता शेखर 'मधु'

आसमान की नई कहानी धरती पर ले आतीं बूँदें
तपा ग्रीष्म तो भाप बनीं वह फिर बादल बन जाती बूँदें
श्वेत श्याम भूरे लहंगे में इधर उधर इतराती बूँदें
सखी सहेली बनकर रहतीं आपस में बतियाती बूँदें
नई नई टोली जब जुटती अपना बोझ बढ़ाती बूँदें
थक जातीं जब बोझिल होकर नभ में टिक ना पातीं बूँदें
ताल तलैया पोखर भरतीं कागज़ नाव तिराती बूँदें
रिमझिम रिमझिम बारिश करके बच्चों संग नहाती बूँदें
सुन मल्हार राग आ जातीं कजरी गीत सुनाती बूँदें
झूले पेंगें हरियाली में गोरी के मन भाती बूँदें
तृषित धरा की सोंधी ख़ुशबू गिरकर ख़ूब उड़ाती बूँदें
विकल व्यथित वीरान हृदय में आँसू बन बस जाती बूँदें
गंगा की पावन लहरों में गोद भराई पाती बूँदें
लहरों पर इठलाती गातीं सागर में मिल जाती बूँदें
ऊपर उठतीं नीचे गिरतीं सिंधु में जा समाती बूँदें
स्वाति को सीप का साथ मिले मोती बन रम जाती बूँदें
आती बूँदें जाती बूँदें जीवन को कह जाती बूँदें
या तो लहरों में खो जातीं या मोती बन जाती बूँदे।

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