डाक-डुहू - डाक-डुहू
बजे बीन मोर चंग।
खेत बहे नदिया
पहाड़ बहे झरना
बूँद-बूँद प्यास ले
उदास फिरे हिरना
पत्थर पर महुए के
फूल झरे संग-संग।
चंदा के साथ हँसे
ताल भर तरैया
धार-बीच माझी की
थइया रे थइया
पछुआ के पाल तने
पुरवा के जल तरंग।
मुर्गे की कलँगी को
छू रहा सवेरा,
टूट रहा ‘गरबा’ का
‘करमा’ का घेरा,
सात आसमान चढ़े
सपनों के सात रंग।