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बूंद / निमिषा सिंघल

बूंद हूँ मैं एक खारी,
छलकी
हो चक्षु से भारी,

बहकी बन सुख-दुख की मारी,
बूंद हूँ मैं एक खारी।

मन, हृदय सब ग़म से भारी
कर गया आंखों को हारी,
बोझ सारा मैं समेटे,
चल पड़ी
हो मैं दीवानी।
बूंद हूँ मैं एक खारी।

सुख अधिक छलका दे मुझको
दुख अधिक कर देता भारी,
प्रेम में भरती हृदय को,
संताप में कर देती खाली।
बूंद हूँ मैं एक खारी