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बेचारा बाप / हरिऔध

भाग पलटे पलट गया वह भी।
बासमझ औ बहुत भला जो था।
आज वह सामना लगा करने।
आँख के सामने पला जो था।

प्यार का प्याला पिला पाला जिसे।
हाथ से उस के बहुत से दुख सहे।
कर रहा है छेद छाती में वही।
हम जिसे छाती तले रखते रहे।

मानते जिस को बहुत ही हम रहे।
मानता है क्यों न वह मेरा कहा।
किस लिए वह मूँग छाती पर दले।
जो सदा छाती तले मेरी रहा।

क्यों वही है आँख का काँटा हुआ।
आँख जिस को देख सुख पाती रही।
जी हमारा क्यों जलाता है वही।
पा जिसे छाती जुड़ा जाती रही।

बावला हो जाय जी कैसे नहीं।
आँख से कैसे न जलधारा बहे।
है कलेजे में छुरी वह मारता।
हम कलेजे में जिसे रखते रहे।

फूल से हम जिसे न मार सके।
है वही आज भोंकता भाला।
आज है खा रहा कलेजा वह।
है कलेजा खिला जिसे पाला।

क्यों कलेजा न प्यार का दहले।
ले कलेजा पकड़ न क्यों नेकी।
बाप के मोम से कलेजे को।
दे कुचल कोर जो कलेजे की।

किरकिरी वह आँख की जाये न बन।
जो हमारी आँख का तारा रहा।
कर न दे टुकड़े कलेजे के वही।
है जिसे टुकड़ा कलेजे का कहा।

सुख अगर दे हमें नहीं सकता।
तो रखे लाज दुख ऍंगेजे की।
वह फिरे देखता न कोर कसर।
कोर है जो मेरे कलेजे की।

दूसरा क्या सपूत करता है।
किस तरह मुँह न मोड़ लेवे वह।
पीठ पर ही उसे फिरे लादे।
पीठ कैसे न तोड़ देवे वह।