हैरान हूँ यह सोचकर
कहाँ से आती हैं बार-बार
कविता में बेटियाँ
बाजे बजाकर
देवताओं के साक्ष्य में
सबसे ऊँचे जंगलों
सबसे लम्बी नदियों के पार
छोड़ा था उन्हें
अचरज में हूँ
इस धरती से दूर
दूसरे उपग्रहों पर चलीं गई वे बेटियाँ
किन कक्षाओं में
घूमती रहती है आस-पास
नये-नये भाव वृत्त बनाती
घेरे रहती हैं
कैसे जान लेती हैं-