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बेटी की कविता-4 / नरेश चंद्रकर

"मेरे पैर सफ़र में हैं!"

बहुत हुलसते हुए कहती है वह

"इनकी दो उंगलियाँ
जा रही हैं सफ़र पर"

"पहली दूसरी को छोड़कर
पुनः लौट लेगी"

"सच है न पापा!"