बेटी बनकर मुसकाती है, बहना बन लाड़ लड़ाती है,
पत्नी बन जीवन स्वर्ग करे, माँ बनकर दूध पिलाती है।
इन सबके बिन इस जीवन में, खुशियाँ न कोई पायेगा,
नारी के बिन कोई भी नर, धरती पर ही न आयेगा॥1॥
बेटी बनकर...
अस्तित्व तुम्हारा नारी से, नौ माह पेट में रखती है,
ना आँच ज़रा आने देती, तुझको जीवन भर ढकती है।
जब चोट ज़रा लगती है तो, माँ ही आवाज़ निकलती है,
यह वह जन्नत है जो हमको, लाखों पुण्यों से मिलती है।
माँ के चरणों में स्वर्ग बसा, जो और कहीं न पायेगा,
नारी के बिन कोई भी नर, धरती पर ही न आयेगा॥2॥
बेटी बनकर...
बहना बन कर खुशियाँ देती, लड़ती है ख़ूब झगड़ती है,
भाई पै जान लुटाती है, जब कभी ज़रूरत पड़ती है।
रक्षाबंधन पर राखी को, बाँधने कलाई में आती,
अपने आने के सँग में ही, ढ़ेरों खुशियाँ है ले आती।
उसके मुस्काने से तेरा, जीवन सुरभित हो जायेगा,
नारी के बिन कोई भी नर, धरती पर ही न आयेगा॥3॥
बेटी बनकर...
पत्नी बन ताक़त बन जाती, जब कभी ज़रूरत पड़ती है।
अपने पति के जीवन के हित, यमराज से भी जा लड़ती है।
जीवन भर सारे सुख-दुःख में, हर लम्हा साथ निभाती है,
तुम उसको कुछ न मानो वो, पति में परमेश्वर पाती है।
उसकी चूड़ी की खनखन में, संगीत मधुर सुन पायेगा,
नारी के बिन कोई भी नर, धरती पर ही न आयेगा॥4॥
बेटी बनकर...
बेटी बनकर मुस्करा उठे, हर तरफ़ फूल खिल जाते हैं,
जब कोयल जैसी कूक उठे, सब दर्द धूल मिल जाते हैं।
सौभाग्य से मिलती है बेटी, जो जीवन को महकाती है,
ढेरों खुशियाँ भर देती है, सारे घर को चहकाती है।
जीवन बेटी के चेहरे की, मुस्कान देख कट जायेगा,
नारी के बिन कोई भी नर, धरती पर ही न आयेगा॥5॥
बेटी बनकर...
चाची, ताई, बुआ, मौसी, मामी का प्यार यही देती,
दादी-नानी बनकर हमको, सम्पूर्ण दुलार यही देती।
जब कभी ज़रूरत होती है, यह नज़र उतारा करती है,
दुःख, दर्द और हर एक ग़म को, पल-पल पै मारा करती है।
इन पावन रिश्ते-नातों में, नारी का दर्शन पायेगा,
नारी के बिन कोई भी नर, धरती पर ही न आयेगा॥6॥
बेटी बनकर...
नारी की पूजा करना ही, मनु ने कर्त्तव्य बताया है,
वेदों ने और शास्त्रों ने, इसकी महिमा को गाया है।
यह अर्धांगिनी कहाती है, नर से हरगिज़ न छोटी है,
इसको सम्मानित करने से, खुशियों की वर्षा होती है।
"रोहित" नारी की पूजा से, संसार स्वर्ग बन जायेगा,
नारी के बिन कोई भी नर, धरती पर ही न आयेगा॥7॥
बेटी बनकर...